जिस बच्चे का हुआ था देश में पहला लीवर ट्रांसप्लांट, वो अब डॉक्टर बनकर दूसरे बच्चों को देगा नया जीवन
1998 में मेडिकल साइंस ने देश में इतिहास रच दिया। तब पहली बार 20 महीने के एक बच्चे का सफलतापूर्वक लीवर ट्रांसप्लांट किया गया। अब 22 सालों के बाद वह बच्चा संजय कंडास्वामी डॉक्टर बनने जा रहा है। अगले साल अप्रैल में संजय की पढ़ाई पूरी हो जाएगी और वे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में काम करेंगे। संजय का कहना है कि जैसे डॉक्टरों ने उनकी जान बचाई, वैसे ही वे भी बच्चों की जान बचाएंगे।
23 साल के संजय कंडास्वामी तमिलनाडु के कांचीपुरम से ताल्लुक रखते हैं। उनका जन्म बहुत ही दुर्लभ परिस्थितियों में हुआ था। उन्हें लीवर की एक बीमारी थी, जिसमें नवजात बच्चों का लीवर काम नहीं करता है। ऐसे में डॉक्टरों ने लीवर ट्रांसप्लांट करने की योजना बनाई। संजय के पिता ने ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए अपने लीवर का 20 प्रतिशत हिस्सा दिया। यह सर्जरी सफल रही।
जैसे-जैसे संजय बड़े हुए, वैसे वैसे उन्हें अपनी कहानी के बारे में पता चला। डॉक्टर उन्हें भगवान से कम नजर नहीं आए और उन्होंने डॉक्टर बनना ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। हालांकि, शुरुआत में वे एक सर्जन बनना चाहते थे।
संजय कहते हैं, "मैं बचपन से डॉक्टर बनना चाहता था। इस पेशे के लोग दूसरों की जान बचाते हैं। मैं भी आज डॉक्टरों की वजह से जीवित हूं। शुरुआत में मैं एक सर्जन बनना चाहता था लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि मेरी रुचि पीडियाट्रिक्स में है। मेरे अंदर नियोनेटोलॉजी (नवजात शिशुओं) का विशेषज्ञ बनने की पूरी संभावना है।"
संजय कंडास्वामी की लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाली डॉक्टरों की टीम में शामिल डॉ. अनुपम सिब्बल कहते हैं कि संजय कंडास्वामी भारत का पहला बच्चा था जिसकी सफलतापूर्वक लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई। उन्होंने कहा कि अब 22 साल बीत चुके हैं और लीवर ट्रांसप्लांट के बाद लंबे समय तक जीवित रहने का संजय एक बहुत बड़ा उदाहरण हैं।
डॉक्टरों की टीम में शामिल एक और डॉक्टर एएस सोइन ने बताया कि संजय कंडास्वामी दो महीने तक आईसीयू में रहा था और डॉक्टरों ने संजय को आईसीयू से बाहर निकालने के लिए खुद को पूरी तरह से झोंक दिया था। इतना कि सभी डॉक्टर व्यावहरिक तौर पर दो महीने तक घर भी नहीं गए थे।
आज भी लीवर प्रत्योरोपण के मामले में माता पिता को यह आशंका रहती है कि उनका बच्चा बड़ा होकर सामान्य जीवन जी पाएगा नहीं। खासकर, बच्चियों के संबंध में उन्हें डर होता है कि वे प्रजनन कर पाएंगी या नहीं। हालांकि, मेडिकल विशेषज्ञ इन आशंकाओं को सही नहीं बताते हैं। आशा है कि संजय कंडास्वामी ऐसे ही अनेकों बच्चों को नया जीवन दे पाएंगे।
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