Shivangi Singh
#अच्छा काम : राफेल संग आसमान चूमेंगी वाराणसी की शिवांगी, रचेंगी इतिहास
वाराणसी। जोश, जुनून और अनवरत प्रयास के बल पर कोई लक्ष्य नामुमकिन नहीं है -इसे वाराणसी के फुलवरिया गांव की शिवांगी सिंह ने साबित कर दिखाया। लीक से हटकर वायु सेना में फाइटर विमान उड़ाने का सपना पाला। फिर उसे साकार करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की और अब एक नया इतिहास रच दिया। बनारस की गलियों से निकल कर शिवांगी दुनिया के उच्च श्रेणी के युद्धक विमानों में से एक राफेल की पहली महिला पायलट बनने जा रही हैं।
ऐसे चुनी एयरफोर्स की राह
शिवांगी के नाना कर्नल वीएन सिंह सेवानिवृत्ति के बाद नई दिल्ली में रहने लगे। वहां शिवांगी अपनी मां व भाई के साथ अक्सर जाती थीं। मां सीमा सिंह ने बताया कि हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान पिताजी नई दिल्ली में बच्चों को एयरफोर्स का म्युजियम दिखाने गये। वहां एयरफोर्स के विमान और वायु सैनिकों की ड्रेस देख शिवांगी रोमांचित हो गई। उसी समय नाना से बोली कि उसे भी वायु सेना में जाना है। ऐसी ही ड्रेस पहननी है और फाइटर विमान भी उड़ाना है। शिवांगी ने वहीं जीवन का लक्ष्य तय कर लिया। साल 2015 में उन्होंने वायु सेना की परीक्षा पास की। फिर डेढ़ साल के प्रशिक्षण के बाद साल 2017 में उन्हें देश की पांच महिला पायलटों में चुना गया। तीन साल बाद ही काबिलियत देखते हुए उन्हें राफेल की टीम में चुन लिया गया। शिवांगी वायु सेना का फाइटर विमान मिग-21 बाइसन उड़ाती हैं। अब वह राफेल के लिए अंबाला में तकनीकी प्रशिक्षण ले रहीं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी 'कन्वर्जन ट्रेनिंग' पूरा करने के बाद वायुसेना के अंबाला बेस पर 17 'गॉल्डन एरोज स्क्वैड्रन' में औपचारिक एंट्री लेंगी.
नटखट बिटिया चिड़ियों की तरह उड़ना चाहती थी
फुलवरिया रेलवे क्रासिंग के निकट तीन दशक पुराने मकान में मां सीमा सिंह, पिता कुमारेश्वर सिंह, भाई मयंक सिंह, शुभांशु समेत शिवांगी का पूरा परिवार रहता है। शिवांगी की मां सीमा सिंह बताती हैं कि फाइटर विमान राफेल स्क्वाड्रन गोल्डन ऐरो के विशेषज्ञ पायलट के प्रशिक्षण के लिए जब वायुसेना ने शिवांगी का चयन किया, तभी लग गया था कि बेटी यहां भी खुद को साबित करेगी। बेटी की बड़ी सफलता बयां करते-करते मां की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। फिर कुछ संभल कर बोलीं- बचपन से ही नटखट बिटिया चिड़ियों की तरह आसमान में उड़ना चाहती थी।
खेलों में भी मनवाया लोहा
शिवांगी खेलों में भी आगे रहती थॆ। स्कूल के लिए उसने नेशनल स्तर तक की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। उसका ड्रिल लड़कों से भी बेहतर था। इसलिए हर बार टीम में चुनी जाती। उसकी बदौलत टीम जीतती भी थी। जैवलिन थ्रो में भी उसने राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता।
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