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पंजाब के बाद असम बनेगा कैंसर रोगियों के लिए इलाज की सुविधा का हब

Updated: Sep 18,2020,11:57 PM IST निर्मल यादव

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नयी दिल्ली। देश में कैंसर के रोगियों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण और इसके सीमित उपचार के दायरे को बढ़ाने के लिये केन्द्र सरकार के उपायों को गति प्रदान करने में उत्तरी राज्य पंजाब के बाद अब पूर्वोत्तर में असम ने सक्रियता दिखाई है। 
कैंसर के उपचार में परमाणु ऊर्जा विभाग की व्यापक भूमिका विषय से जुड़ी संसद की विभाग संबंधी स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है। इसके अनुसार उत्तर और पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले कुछ सालों के दौरान कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सरकार ने कैंसर उपचार का नेटवर्क व्यापक करते हुये मुंबई स्थित टाटा स्मारक केन्द्र के साथ मिलकर संचालित किये जा रहे राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड (एनसीजी) का दायरा बढ़ाया है। इसके तहत राज्य और जिला स्तर पर बनने वाले हब एंड स्पाॅक मॉडल के दायरे में असम के 17 अस्पतालों के बहुस्तरीय नेटवर्क बनाया है। ग्रिड के अंतर्गत असम में संचालित राज्य कैंसर संस्थान इन सभी 17 अस्पतालों में कैंसर उपचार की सभी जरूरी सुविधायें मुहैया कराने की निगरानी करेगा।
 
कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा संसद के पिछले सत्र में पेश रिपोर्ट के अनुसार अभी पंजाब एकमात्र राज्य है, जिसमें हब एंड स्पॉक मॉडल पूरी तरह प्रचलन में है। परमाणु ऊर्जा विभाग और टाटा स्मारक केन्द्र द्वारा संचालित एनसीजी के अंतर्गत कैंसर रोगियों को अपने शहर के आसपास ही कैंसर की पहचान, शुरुआती सामान्य  इलाज और कम जटिल श्रेणी की देखभाल सुविधा मुहैया कराने के लिये स्थानीय स्तर पर हब बनाये गये हैं। इसके समानांतर जटिल एवं उच्च गुणवत्ता वाले इलाज के लिये राज्य स्तर पर बनाये गये उपचार केन्द्र को ‘स्पॉक‘ कहा जाता है। 
 
रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में प्रचलित हब एंड स्पॉक के तहत टाटा स्मारक केन्द्र की भागीदारी में पिछले दो साल से चंडीगढ़ के पास मुल्लानपुर और संगरुर में दो स्पॉक संचालित हैं। संगरूर स्पॉक में हर साल औसतजन 8000 मरीजों का इलाज किया जाता है। इसके अलावा राज्य में विभिन्न हब के र्नेटवर्क के दायरे में छह अन्य स्थानों (फरीदकोट, भटिंडा, पटियाला, अमृतसर, फाजिल्का और होशियारपुर) पर स्पॉक की शुरुआत हो गयी हैै। 
 
समिति को विभाग ने सूचित किया है कि इस ग्रिड के दायरे में देश के विभिन्न स्थानों पर 160 हब और स्पॉक बनाये जाने है। उल्लेखनीय है कि देश में फिलहाल मुंबई स्थित टाटा स्मारक केन्द्र ही सबसे पुराना और सबसे बड़ा कैंसर उपचार केन्द्र है। इसमें कैंसर के औसतन 80 हजार नये मरीजों का सालाना उपचार हेतु पंजीकरण किया जाता है। समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश में सर्वाधिक कैंसर रोगी उत्तरी, पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों से सामने आ रहे हैं। इसके मद्देनजर परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत संचालित टाटा स्मारक केन्द्र ने अब वाराणसी में दो और गुवाहाटी, संगरुर, विशाखापत्तनम और मुल्लानपुर में एक एक कैंसर उपचार केन्द्र शुरु किया है। 
 
टाटा स्मारक केन्द्र द्वारा 2012 में शुरु किये गये एनसीजी के दायरे को पिछले सात सालों में व्यापक बनाते हुये देश भर में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के 183 कैंसर केन्द्रों को शामिल कर लिया गया गया है। इनके माध्यम से कैंसर के सात लाख मरीजों का हर साल उपचार होता है। यह संख्या कैंसर के कुल मरीजों की संख्या का 60 प्रतिशत है। उपचाराधीन मरीजों की नेविगेशन तकनीक पर आधारित देखभाल के लिये पिछले साल अपने तरह का पहला ‘‘केवट नेविगेटर’’ प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरु किया गया है। इसकी मदद से चिकित्साकर्मी मरीजों का इलाज शुरु होने के बाद इन्हें पूरी तरह से ठीक होने तक इलाज का फॉलोअप किसी भी स्थान से कर सकेंगे।
 
रिपोर्ट के अनुसार भारत में दो तिहाई कैंसर मरीजों को इलाज की सुविधा के लिये नहजी क्षेत्र के अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। स्पष्ट है कि इलाज पर क्षमता से अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ने के कारण देश की लगभग करोड़ आबादी  हर साल गरीबी रेखा से नीचे चली जाती है। रिपोर्ट में आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि देश में हर साल कैंसर ग्रस्त होने वालों की अनुमानित संख्या 16 लाख है जबकि इससे मरने वालों की संख्या आठ लाख् है। महिलाओं में सर्वाधिक कैंसर रोगी (1.4 लाख) स्तन कैंसर और पुरुषों में सर्वाधिक (1.3 लाख) रोगी ओरल केविटी यानी मुंह के कैंसर से पीड़ित होते हैं। 
 
रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के आध्याार पर कहा गया है कि भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में आयु समायोजित कैंसर दर यद्यपि पिछले कुछ सालों में स्थिर रही है, वहीं कैंसर के उपचार से रोगमुक्त हुये मरीजों का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ा है। लेकिन आगाह भी किया गया है कि कैंसर से 2018 में 0.88 मिलियन मौत का आंकड़ा बढ़कर 2025 में 1.3 मिलियन होने की संभावना है। इसकी एक वजह इलाज में जरूरी रेडियोथैरेपी की सीमित सुविधा होना है। अभी पूरे देश में लगभग 500 संस्थानों में 700 रेडियाथेरेपी मशीने उपलब्ध है। प्रति 10 लाख आबादी पर कम से कम एक मशीन की उपलब्धता के लिहाज से 1200 मशीनों की अतिरिक्त जरूरत है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने समिति को बताया कि रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी सुविधा अब जिला स्तर पर मुहैया कराने का अभियान भी तेज किया जा रहा है।                   
 
समिति ने मौजूदा स्थिति को देखते हुये इलाज की सीमित सुविधाओं की समस्या से निपटने के लिये पूरे देश में जल्द ट्रीटमेंट हब बनाने की सिफारिश की है, जिससे मरीजों को एक ही स्थान पर कैंसर के इलाज की सुविधा मिल सके और उन्हें लंबी दूरी तय कर इलाज के लिये महानगरों में न जाना पड़े।

समिति के सदस्य और सपा के राज्यसभा सदस्य रवि प्रकाश वर्मा ने बताया कि ट्रीटमेंट हब का दायरा बढ़ाने हेतु स्थान चिह्नित करने के लिये समिति ने सरकार को एक कार्यबल का गठन करने की सिफारिश की है। साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय को कैंसर के इलाज में जरूरी कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी सहित अन्य सुविधाओं के विस्तार में परमाणु ऊर्जा विभाग के साथ सामंजस्य कायम कर कार्ययोजना बनाने को भी कहा है।

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