#Achhakaam : कोरोना काल मेें दीवारें बनीं ब्लैकबोर्ड, शिक्षा की अलख जगाने घर-घर पहुंचेे गुरुजन

Achhakaam.com | Sep 26,2020,07:12 PM IST
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कोरोना महामारी ने शहर हों या गांव स्कूली शिक्षा को पंगु बना दिया है। जहां आनलाइन शिक्षा मिल भी रही है तो वह मोबाइल और इंटरनेट की उपलब्धता पर आश्रित है। ऐसे में संसाधनहीन बच्चों केे लिए तो यह मुसीबत और बड़़ी है। हालांकि, इस कठिन दौर में भी कुछ अनूठेे प्रयोग जारी हैैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे। कहीं शिक्षक तो कहीं आम लोग बच्चों तक पहुंच बनाकर उनकी शिक्षा जारी रखने में जुटे हैं। शुरुआती जिक्र झारखंड केे दुमका के एक गांव की। झारखंड के सुदूर आदिवासी गांव के सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने छात्रों के लिए घर की दीवारों को अलग-अलग ब्लैकबोर्ड में बदलने का अभिनव विचार पेश किया है। उनका कहना है कि आदिवासी बच्चे आसानी से दीवार पेंटिंग सीखते हैं, इसलिए घर की दीवार को ब्लैक बोर्ड के रूप में तब्दील कर पढ़ाने का निर्णय लिया गया। सुुखद बात यह रही कि प्रयोग छात्रों को आकर्षित करने में सफल रहा। सामाजिक दूरी को बनाए रखते हुए यहां पढ़ाई जारी है।

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दुमका जिले का यह गांव दूरस्थ क्षेत्र में है, जहां इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए छात्रों के हित में अपने घरों में समूह में उनके लिए कक्षाएं आयोजित करने का निर्णय लिया गया। गांव में अलग-अलग टोले की दीवारों पर सामाजिक दूरी को बनाए रखते हुए प्रत्येक छात्र के लिए अलग ब्लैक बोर्ड बनाया गया है। स्कूल में प्रधानाध्यापक सहित चार शिक्षक हैं और सभी स्कूल के समय में एक लाउडस्पीकर के साथ रोटेशन में वहां उपस्थित होते हैं।

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ब्लैक बोर्ड ज्यादातर छात्रों के घर की दीवार पर ही है, इसलिए वे स्कूल टाइमिंग के अनुसार रोजाना स्कूल ड्रेस में वहां बैठते हैं और पढ़ाई करते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए हर छात्र को चोक और डस्टर दिया गया है। छात्रों के सवाल और संदेह उनके ब्लैक बोर्ड पर शिक्षकों द्वारा हल किया जाता है।

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कोरोना महामारी के बीच शिक्षा छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए एक कठिन काम रहा है। शैक्षणिक वर्ष जून के मध्य में शुरू होता है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष कोई स्कूल नहीं खुल सका और कई ने ऑनलाइन कक्षाएं लेने का सहारा लिया। हालांकि, मजबूत इच्छाशक्ति से लैस, ग्रामीण पुणे के कलामशेट गांव में जिला परिषद स्कूल के शिक्षकों ने तय किया कि उनके छात्र ई-लर्निंग संसाधनों की कमी के बावजूद शिक्षा से वंचित न हों।

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कलामशेट गांव में जिला परिषद स्कूल के शिक्षकों ने देखा कि मोबाइल और इंटरनेट जैसी सुविधाएं नहीं होने  से यहां  के  बच्चे पढ़ाई से दूर  हो रहे हैं। प्रधानाध्यापक के साथ मिलकर शिक्षकों  ने तय किया कि अभिभावकों  को  समझा बुझाकर बच्चों  को  पढ़ाई के लिए लाने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए एक साथ ज्यादा बच्चों को पढ़ाने की बजाए छोटे-छोटे समूह में पढ़ाई करााएंगे, तााकि सामाजिक दूरी का ख्याल रखा जा सके।  

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कलामशेट गांव में शिक्षकों का प्रयास यही नहीं  थमा।  छोटे-छोटे बच्चों और  अभिभावकों की सुविधा का ख्याल रखते हुए वे  उनकेे  घरों तक भी पहुंच रहे और एक एक बच्चे की पढ़ाई सुनिश्चित कर रहे हैं। 

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एक दिन दिल्ली निवासी वीना गुप्ता की नौकरानी ने शिकायत की कि कोरोना काल में स्कूल बंद होने से गरीब परिवारों के बच्चे यूं ही सड़कों के किनारे टहल रहे हैं और अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। इसके बाद वीना गुप्ता ने अपने पति के साथ मिलकर उन्हें पढ़ाने की ठानी। इस काम में उन्हें अपने ड्राइवर का भी साथ मिला। वे लोग सप्ताह में तीन बार, सुबह और शाम तीन अलग-अलग समूहों को पढ़ा रहे हैं। सड़क के किनारे कक्षाएं बढ़ी हैं, क्योंकि दर्जनों बच्चों ने इसमें गहरी रुचि दिखाई है।