IT professional from Taiwan, fashion designer from Gandhinagar learning farming tricks in Bundelkhand. photo credit : Achhakaam.com

कोरोना इफेक्ट : ताइवान के आईटी प्रोफेशनल, गांधीनगर के फैशन डिजाइनर बुंदेलखंड में सीख रहे खेती के गुर

Updated: Oct 4,2020,01:44 PM IST निर्मल यादव

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बांदा (उत्तर प्रदेश) : ताइवान में कार्यरत आईटी प्रोफेशनल राजीव सिंह और उनकी पत्नी साक्षी हों, गांधीनगर के फैशन डिजाइनर रोहित दुबेया लोकगायिका बेबी रानी प्रजापति,  इन दिनों तमाम अलग-अलग विधा के ये महारथी (प्रोफशनल्स) बुदेलखंड के एक गांव में जुटे हैं। जीवन में न पैसे की कमी है और न सुख सुविधाओं की। फिर भी कुछ अधूरा है। यहां से कुछ ऐसा सीख कर जाना चाहते हैं, जो मन को सुकून दे सके। कोरोना संकट ने प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संजीदा सोच रखने वालों को  अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया है। इसी का नतीजा है कि फैशन डिजाइनिंग, सूचना प्रोद्योगिकी जैसे क्षेत्रों से लेकर पत्रकारिता और कला जगत तक से जुड़े लोग अपना कार्य क्षेत्र  बदलकर प्रकृति के नजदीक रहने के लिए गांव और खेती बाड़ी का रुख कर रहे हैं। 

खेती बाड़ी के जरिये प्रकृति के करीब रहकर काम करने के लिए उत्तर प्रदेश के बुदेलखंड में एकजुट हुए विभिन्न क्षेत्रों के कार्य कुशल लोग (प्रोफेशनल) खेती के गुर सीख रहे हैं। बुंदेलखंड के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह के बांदा स्थित फार्म हाऊस में उन लोगों का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू किया गया है, जिन्होंने अपने मौजूदा  व्यवसाय छोड़कर खेत खलिहान में अपना हुनर दिखाने का फैसला किया है। संतोषप्रद जीवनशैली सुनिश्चित करने वाली आवर्तनशील खेती की अवधारणा से दुनिया को परिचित कराने वाले प्रेम सिंह की अगुवाई में हुई पहली कार्यशाला में ‘‘खेती क्यों और कैसे हो’’ इसका व्यवहारिक ज्ञान कराया गया। 

 

 

चार दिवसीय कार्यशाला की सफलता से उत्साहित प्रेम सिंह और उनकी प्रशिक्षण टीम ने इस तरह की अनूठी कार्यशालाओं का सिलसिला जारी रखने का फैसला किया है। कार्यशाला के संचालक जितेन्द्र गुप्ता बताते हैं कि पर्यावरण संकट को देखते हुये अब विभिन्न क्षेत्रों के प्रोफेशनल खेती की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन खेती किसानी के हुनर से अनभिज्ञ होने के कारण उन्हें इस विधा के सामान्य व्यवहारिक ज्ञान की दरकार होती है। उन्होंने कहा कि इस जरूरत को महसूस करते हुये अब हर महीने चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन करने की कार्ययोजना बनायी गयी है।  

मानव जीवन की पूर्णता का अहसास : प्रेम सिंह

प्रेम सिंह का मानना है कि किसानी ही एकमात्र ऐसा कार्य है, जो प्रकृति की सेवा करते हुए पर्यावरण को संतुलित बनाने एवं मानव जीवन की पूर्णता का अहसास कराता है। वह बताते हैं कि उन्होंने 1987 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बांदा स्थित अपने पुश्तैनी गांव बड़ोखर खुर्द में नई अवधारणाओं पर आधारित खेती करना शुरू किया था। उन्होंने बताया कि पिछले तीन दशक से जारी प्रयोगधर्मी कृषि के दौरान ही आवर्तनशील पद्धति को विकसित किया गया। उनके फार्म हाऊस पर अब इस पद्धति से खेती सीखने के लिए दो दर्जन से अधिक देशों के किसान और छात्र हर साल नियमित रूप से आते है। 

सतत प्रयोगों पर आधारित आवर्तनशील पद्धति से खेती के प्रशिक्षण के व्यवस्थित पाठ्यक्रम को युवा किसान जितेन्द्र गुप्ता ने तैयार किया है। अपने तरह के इस अनूठे प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में फार्म डिजाइनिंग, सिंचाई एवं जल प्रबंधन, पशुपालन और जैविक खाद निर्माण सहित खेती से जुड़े विभिन्न कार्यों को सीखने समझने का कोर्स डिजाइन किया है। इसमें तालाब निर्माण के महारथी और बुंदेलखंड क्षेत्र में एक हजार से अधिक तालाब बनवाने वाले प्रगतिशील किसान पुष्पेन्द्र जल प्रबंधन के गुर सिखाते हैं। वहीं, बागवानी विशेषज्ञ, पंकज बागवान फल एवं सब्जियों के बाग लगाने के तौर तरीके बताते हैं। जबकि, कृषि विशेषज्ञ शैलेन्द्र सिंह बुंदेला, किसानों को खुद अपने फार्म पर ही जैविक खाद बनाने के गुर सिखाते हैं। इसके अलावा प्रेम सिंह, ‘खेती क्यों और कैसे’ जैसे मूलभूत सवालों के जवाब अपने अनुभवजन्य ज्ञान से देकर संतृप्त एवं संतोषप्रद जीवनशैली से प्रशिक्षुओं को अवगत कराते हैं। 

ताइवान छोड़ भारत लौटना चाहते हैं राजीव-साक्षी

अब बात उन प्रोफेशनल की, जिन्होंने अपने काम से पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलने के कारण कोरोना काल में जीवन की दिशा और दशा बदलने का फैसला कर आवर्तनशील खेती के प्रशिक्षण में हिस्सा लिया। ताईवान में पिछले डेढ़ दशक से रह रहे राजीव सिंह और उनकी पत्नी साक्षी वहां की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे ओहदे पर कार्यरत थे। राजीव बताते हैं कि पैसे पर्याप्त होने के बावजूद उनका परिवार जीवन में संतुष्ट नहीं था। खेती बाड़ी को पूर्ण एवं तृप्त जीवन का आधार मानते हुए राजीव ने इस साल जनवरी में अपनी नौकरी छोड़कर भारत में खेती करने का फैसला किया। स्वदेश वापसी की मुकम्मल तैयारी करने के बाद मार्च में कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन की वजह से उनकी योजना खटाई में पड़ती नजर आई।

गांव में बसने के लिये संकल्पबद्ध राजीव और उनकी पत्नी ने हालात से हिम्मत न हारते हुए गत जून में ताईवान के दक्षिणी राज्य पिंग तुंग के लिन लाऊ गांव का रुख किया। फिलहाल उनका परिवार गांव की एक वृद्ध  महिला किसान जॉय लिन का सहारा बनकर उसके साथ खेती-बाड़ी का काम कर रहा है। प्रेम सिंह के बाग में आयोजित कार्यशाला में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए  शिरकत कर रहे राजीव और साक्षी ने बताया कि लॉकडाउन की बाध्यताएं खत्म होते ही स्वदेश वापसी करेंगे। वे भारत में अपने परिवार के साथ मध्य प्रदेश के रीवा जिले में अपने गांव में रहकर ही प्रकृति की सेवा करते हुए शेष जीवन को पूर्ण संतुष्टि के साथ बिताना चाहते हैं।

50 बीघे में अवर्तनशील पद्धति से खेती करेंगे रोहित

इसी प्रकार गुजरात में बतौर फैशन डिजाइनर अपना कारोबार जमा चुके रोहित दुबे को भी कोरोना संकट ने शहरी जीवनशैली की अपूर्णता के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। रोहित बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में स्थित अपने पुश्तैनी गांव आना पड़ा। इस दौरान खुद को खेती से जोड़ने के बारे में सोचने के बाद मैं इस विधा के गुर सीखने के लिए प्रेम भाई के बाग तक पहुंच गया। रोहित ने अब अपनी 50 बीघा पुश्तैनी जमीन पर अवर्तनशील पद्धति पर आधारित फार्म हाऊस बनाने का काम शुरू कर दिया है।

बेबी रानी लोकगीतों के जरिए करेंगी प्रचार

कुछ ऐसी ही कहानी मध्य प्रदेश की युवा लोक गायिका बेबी रानी प्रजापति की भी है। छतरपुर की निवासी बेबी रानी ने भी लोक गायिकी के अपने काम को जारी रखते हुए अपने पुश्तैनी गांव में नई सोच के साथ खेती शुरू कर दी है। बेबी रानी इससे इतनी प्रभावित हैं कि अब वे लोकगीतों के माध्यम से जैविक खेती के प्रति किसानों को जागरूक भी करेंगी। कार्यशाला में दिल्ली एवं हरियाणा के कुछ छात्रों, पत्रकारों और मध्य प्रदेश के ओरछा के कुछ आदिवासी ग्रामीणों ने भी हिस्सा लेकर जैविक खेती की बारीकियां समझीं। 

जैविक खेती का प्रशिक्षण दे रहे जितेंद्र

प्रशिक्षण कोर्स डिजाइनर जितेन्द्र गुप्ता ने बताया कि उन्होंने 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के साथ ही किसान बनने का फैसला कर लिया था। पिछले चार साल से वह खुद प्रेम सिंह के फार्म पर आवर्तनशील पद्धति से जैविक खेती सीख रहे हैं। खेती में अनवरत प्रयोगों के जरिए इस आवर्तनशील पद्धति को कारगर बनाने के बाद 26 वर्षीय गुप्ता अब उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण देते हैं। 

क्या है आवर्तनशील खेती

आवर्तनशील खेती के बारे में प्रेम सिंह का दावा है कि खेती की इस विधा को पूर्णता के करीब माना जाता है। इसमें फार्म के तीन हिस्से कर एक भाग में पशुपालन, एक भाग में फल एवं सब्जियों के  बाग लगाना और एक भाग में सभी प्रकार की स्थानीय फसलों की खेती की जाती है। उनका दावा है कि किसान को खेती में आत्मनिर्भर बनाने का एकमात्र रास्ता आवर्तनशील खेती ही है। इसमें सामान्य उपयोग में आने वाले लगभग सभी प्रकार के खाद्यान्न का उत्पादन एक ही फार्म हाउस में किया जा सकता है। इस तरीके को अपनाने के बाद किसान की बाजार पर निर्भरता न्यूनतम हो जाती है। यही उसकी आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रमुख आधार बनता है।

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